Kavita - 017 - आया मास त्योहारों का
आया मास त्योहारों का मच गए धूम बाजारों मे | पहन नई नई पोशाके मिले सब मेहमानो से | रंग बिरंगी लइट लग गई फ्लैट और मकानों मे | टेब्लो पर सज गई प्लेटे महंगे महंगे पकवानो से | ऑनलाइन शॉपिंग मे भी उथल पुथल है भारी| एक पे एक लेने की अब आई है अपनी बारी | पहन जीन्स और जूत्ते हुई मॉल जाने की तैयारी | श्री मातियो ने टोफो की लिस्ट थमा दी भारी | खूब जमा है रंग | पैसे उड़े बन पतंग | वही दूर कही विरानो मे मेले कुचले फटेहालों मे | बैठ कही कोई रोता होगा | के कल की भाती आज उसे फिर बच्चो संग फिर से भूखा सोना होगा | याद नहीं कब बच्चो को नए कपडे वो लाया था | दिन भर मेहनत कर सबने भर पेट भोजन कब खाया होगा | जलदी उठकर रोज सवेरे सामन बेचने जाता हु | मे भी बड़ी दुकानों जैसे सस्ते मे सौदा लगता हु | फिर भी क्यों मेरे बच्चो के तन पे कपडे मैले है | क्यों मेरे घर के राशन के बर्तन खली होक फैले है | सामान तो मे भी अच्छा देता फिर भी लोग क्यों मुँह बनाते है | भैया थोड़ा महंगा है कह क्यों कुछ न ले जाते है | हे भगवन अब आस बची है तेरी | अब तो सुनले बात तू मेरी | न मांगू मई गाड़ी सोना | मुझ...