Kavita - 006 - ऐ खुद बहुत हुई तेरी खुदाई

ऐ खुद बहुत हुई तेरी खुदाई आ बैठ के चर्चा करते है | बहुत हुई खीचा तानी आ बैठ गुफ्तगू करते है |
बहुत हुई मनमानी आ बैठ फैसला करते है | मैं घर से नाश्ता लाता तू चाय घर से ले आना, आ चाय पे चर्चा करते है |
सब काम बिगड़ सा जाता है | हर कोई खफा नज़र आता है | कुछ भी अच्छा करू सब उल्टा पुल्टा हो जाता है |
चल उलटे को सीधा करते है | बैठ किसे कौन मैं आराम से चर्चा करते है |
माना तू भगवान् है | काम तुझे तमाम है | पर निकाल थोड़ा सा वक्त आ मुझसे भी थोड़ा सा मिल |
और बात तसाली से सुनना पर बीच बीच मैं है हु कोई न कह के दिल को ठंडक सी देना |
बहुत हुई तेरी मूर्ति से बाते आ आमने सामने डिसकस करते है | चल किसे ढाबे बे साग दे नाल चर्चा करते है|
तू ट्रेवल एक्सपेंस की चिंता न करना | मंदिर से रिइम्बर्ससे करालेन्गे | लंच डिनर की चिंता छोड़ बैठ ताज मैं खा लेंगे |
बस तू स्वर्ग से पहली ट्रैन पकड़ कर जल्दी से मिलने आ जाना और साथ मैं मेरे कर्मो के चिट्टा भी उठा लाना |
फिर कर्मो को ऑडिट कर हम निष्कर्ष निकालेंगे | आ बैठ पेड की छाऊ में कर्मो की चर्चा करते है|
कहते तू सबका ध्यान रखता | किसी पे जल्दी किसी पे देर से अपनी दृष्टि करता |
चल तुझपे सब छोड़ अपने कर्मो मैं फिर से जुट जाता हु | तू करले जब तक मनमानी |
हम बाद मैं चर्चा करते है | बैठ किसी कौने डिटेल मैं डिसकस करते है |

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