Kavita - 003 - पत्नी पीडीत पति
यह देख पीड़ित ने बदला प्लान और लगा लिया विष्णु जी का ध्यान | है प्रभु तुम हो सर्व ज्ञानी, पिया तुमने घाट घाट का पानी | तुमने संभाली हजारो गोपी, अब दिलाओ कुछ ऐसी टोपी, न पड़े बीवी से होकी | विष्णु बोले न घबराना, देता हु एक जादू मंतर जो बनाये तुझे सिकंदर | तभी विष्णु पार पड़ी लात लक्ष्मी जी के थे चरण साक्षात , बोली हे विष्णु तुम हो फैकू | चलो चलकर करो सफाई वरना बुलाऊ अपना भाई | ये सुन विष्णु जी थर थर कापे, छोड़ चक्र वो सरपट भागे |
याद आ गयी पीडित को आमा अब बुलाए उसने ब्रह्मा, बोला हे सृष्टि के पालन करता बचालो बन्ने से भरता | देदो कोई ऐसा ज्ञान बेकार हो जाए उस निरदई के बाण | ब्रह्मा बोले न दूंगा तुझे कोई ज्ञान खुद ही बना कोई नया प्लान | मुझे अभी है मार्केट जाना | जाकर नमकीन बिस्कुइत है लाना | सरवती किट्टी पार्टी से आती होगी अगर नहीं मिला तो जज्बाती होगी | मेरे घर बर्बादी होगी |
पीडित का मान है अकड़ा समज न आया ये सब लफड़ा | घर जा कार पोचे को पकड़ा और जाम कर करी सफाई | जय हो भाई इससे मे है भलाई
पीडित का मान है अकड़ा समज न आया ये सब लफड़ा | घर जा कार पोचे को पकड़ा और जाम कर करी सफाई | जय हो भाई इससे मे है भलाई
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