Kavita - 004 - रोज रोज सपने मे आकर
रोज रोज सपने मे आकर हँस कर कुछ कह जाती हो मेरे दिल के टावर को सिग्नल से भर जाती हो | ऐ मेरी प्रियतम प्यारी ऐ मेरी राज दुलारी | दिन मे भी उपकार करो अपने मधुर कंठ से मुझको भी कभी हाए करो |
आते जाते तुमको देख दिल मे कुछ कुछ होता है मेरा मन फिर से सोने का करता है के फिर मेरे सपनो मे आके तुम मुझपर प्यार दिखाओगी | ऐ मेरी प्रियतम प्यारी ऐ मेरी राजकुमारी कुछ मुझपे भी उपकार करो चलो हाए नहीं तो आते जाते कभी तो मुझको बाए करो |
अपने मन के मंदिर मे तुमको देवी सा रखा है | पूजा तो आती नहीं फिर भी हर पल तुमको पूजा है | तुही लक्ष्मी तुही सरस्वती तुही शेरो वाली माता है | ऐ मेरी देवी प्यारी इस भक्त का भी कल्याण करो , चलो हाए नहीं न बाए पर कभी तो आँखे चार करो | ऐ मेरी प्रियतम प्यारी मुझपे भी उपकार करो |
दूर दूर से देख के तुम को सीटी खूब बजता हु | तुम्हारे गुलाबी होटों से सपनो मे rang भर जाता हु रियल का कुछ पता नहीं पर सपनो मे ही जी जाता हु | ऐ मेरी प्रियतम प्यारी |ऐ मेरे सपनो की मलिका कभी मेरे सपनो को साकार करो कभी रियल मे भी प्यार करो |
नागिन जैसे आँखे तेरी दिल को मेरे डस जाती है | मेरे रग रग मे प्यार का जहर फैलती है | न कोई झाड़ न कोई फुक न कोई दवा असर कर पाएगी | ऐ मेरी प्रियतम प्यारी अब मेरा भी उपचार करो | अब इस दिल के रोगी को प्रेम की गंगा से तार करो |
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