Kavita - 005 - ऐ चाँद सुना है तेरे व्रत से
कुछ इधर की कुछ उधर की बाते खूब बनाएँगे | कुछ तुम कहना कुछ तुम सुनना धमा चोकड़ी मचांगे| तू मुझको नभ के तारे दिखलाना| मै तुझको धरती पे चाँद दिखाऊंगा | मै तुझसे मिलने आऊंगा और मैखाने की सबसे महंगी बोतल लाऊंगा |
जाम से जाम छलका कर तुझको अपने दिल का हाल सुनाऊंगा | की हर चांदनी रात तुझमे उसको देखा है कभी रोते कभी बिलखते दीवानो सा पूजा है | अब बस मुझको बत्ला कैसे उसको पाउँगा | मै जल्दी मिलने आऊंगा और साथ मै मैखाने की सबसे महंगी बोतल लाऊंगा |
फिर बोतल को आधी कर मै उसमे ही खो जाऊंगा | अपनी आँखे मूँद मूँद कर मन ही मन मुस्कुंगा | फिर धीरे धीरे तेरी पी हुए बोतल भी मुझको चढ़ जाएगी | बिन पिए ही मै भी होश खो जाऊंगा | मै तुझको मिलने आऊंगा और मैखाने की सबसे महंगी बोतल लाऊंगा |
जब तू खाली बोतल संग मस्ती मै झूम रहा होगा | मै हरपल उसको ढूंढ रहा हूँगा | खुदको उससे दूर देख मै और रुक न पाउँगा | फिर तुझसे प्यार का वादा ले मै घर को लौट के आऊंगा | मै तुझसे मिलने आऊंगा और साथ मै मैखाने की सबसे महंगी बोतल लाऊंगा |
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