Kavita - 007 - नुक्कड़ का वो पहला पहला प्यार
लव का चढ़ा बुखार और इलाज़ समाज न आया था
पत्झड़ के इस मौसम मे भी लव का सीजन आया था | तुझको देखने का फिर दूसरा मौका पाया था | देख तुझे फिर अगली बार दिल को ठंडक सी आई थी | झटपट यार दोस्तों की एक बड़ी सभा बुलाई थी | बहस हुई बलवान, पर लिया सबने तुझको भाभी मान | फिर चाय कोल्ड्रिंक की एक पार्टी रखवाई थी और तुझको पाने की अखण्ड प्रतिज्ञा खाई थी |
आगे का बना प्लान | लिया दोस्तों से डीयो मांग और मम्मी से फेयर एंड हैंडसम की नई शीशी मंगवाई थी | फिर तू अगली बार नुक्कड़ पे चाट खाने आई थी | कसम खुदा की हरी चटनी की लाल मिर्च सी छाई थी | फिर जब तूने बड़े प्यार से पहली टिकी खाई थी | तुझेमे मुझको चुनु मुन्नू की अम्मा नज़र आई थी | फिर रख गोलगप्पे का मान तुझसे नज़र लड़ाई थी |
फिर जब अगली बार तू देख मुझे मुस्काई थी | कसम मम्मी की मेरी जान हथेली आई थी | आँखों आँखों मे फिर तुझो दिल की हाल बता डाला | बिन बोले ही तुझको अपनी हर मंशा बतलाइए थी |
फिर जब तूने सोलह रुपया वाली चोको बार खाई थी | मेरे मन तुझे लव यू बोलने की आई थी | पर साथ तेरी मम्मी भी आई थी |
फिर जब तूने सोलह रुपया वाली चोको बार खाई थी | मेरे मन तुझे लव यू बोलने की आई थी | पर साथ तेरी मम्मी भी आई थी |
फिर जब तू गर्मियो मे पेपर देने आई थी | साथ लंबा चौड़ा बॉय फ्रेंड भी लाई थी | फिर यूद्ध का हुआ ऐलान चले जूते चप्पल चले तम्माम | फिर हाथ पे पट्टी और दिल मे ठोकर आई थी | सोच सोच के रोता ये दिल काश तू मुझसे मिलने आई थी |
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