Kavita - 009 - आज क़े नेता है भाई
आँखों मै चश्मा गले मै टाई देखने मै लगता था बाँदा हाई फई | पर रो रहा था | कही खो रहा था | जाने किस दुःख को अपनी जिंदगी मै ढो रहा था |
शायद इस रूप से जनता को लुभा रहा | बड़े दर्द से वो लाचारी का हाथ मदद क़े लिए फैला रहा था |
कुछ दिन बाद वो मुझे फिर दिया दिखाए | जाने कैसे उसने अपनी किस्मत पलटाई | लाचारी छोड़ क़े वो तो बन गया कसाई | भोली भली जनता क़े कर रहा कटाई | अपनी भारत माता क़े बोटी बोटी नोच खाई | गरीब लाचारों का वो कर रहा शिकार अपनी तिजोरी का बड़ा रहा आकर | यह सब देख मैंने सरपट दौड़ लगाई | अरे ये कोई और नहीं | आज क़े नेता है भाई
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