Kavita - 015 जब हम छोटे बच्चे थे
कंधो पर बास्ते भरी हाथ जरा तब छोटे थे ये उन दिनों के बाते है जब हम छोटे बच्चे थे | रोज सवेरे उठकर दौड़ स्कूल को जाते थे | आधी छुट्टी से पहले टिफ़िन चट कर जाते थे पर पकडे जाने मैडम से मार भी खाते थे | यारो दोस्तों संग जम कर जश्न मानते थे | भोले भले पर शैतानी मे पक्के थे| ये उन दिनों के बाते है जब हम छोटे बच्चे थे |
बिना थके घंटो घंटो बल्ले खूब बजाते थे | और गेंद लेन को नाली मे भी घुस जाते थे | शाम को बिजली जाने पर जमघट बड़ा लगते थे पकड़म पकड़ाई ऊंच नीच का पापड़ा और छुपम छुपाई खेल के आते थे | चाचा चौधरी मोटू पतलू ये यार पुराने अपने थे | गोल गोल घूम शक्तिमान बनने के सपने अपने थे | ये उन दिनों के बाते है अक्कल के हम कच्चे पर मन के थोड़े सच्चे थे | जब हम छोटे बच्चे थे |
रेल गाडी मे बैठ नानी के घर को जाते थे | खुले असमान मे बैठ नल के नीचे नहाते थे | भरी दुपहरी नंगे पाँव आम तोड़ने जाते थे और माली के आने पे सरपट दौड़ लगते थे | चूहले के पास बैठ बड़े चाव से खाना खाते थे | और नानी के बातो मे कुछ अलग मजा ही पाते थे | ये उन दिनों के बाते है जब शैतानी मे हम पक्के थे | जब हम छोटे बच्चे थे|
मम्मी पापा संग मेला देखने जाते थे | टिक्की पपड़ी ढही चाट खूब मजे से खाते थे और वापस आते टाइम हनुमान जी का गदा खरीद कर लाते थे | फिर पुरे घर मे जय श्री राम बोल खुद हनुमान बन जाते थे और सीता मैया को लेन छत की टंकी पैर चढ़ जाते थे | ये उन दिनों की बातें है जब हम अपने मन की करते थे और पुरे दिन को मस्ती से भर देते थे जब हम छोटे बच्चे थे |
बिना थके घंटो घंटो बल्ले खूब बजाते थे | और गेंद लेन को नाली मे भी घुस जाते थे | शाम को बिजली जाने पर जमघट बड़ा लगते थे पकड़म पकड़ाई ऊंच नीच का पापड़ा और छुपम छुपाई खेल के आते थे | चाचा चौधरी मोटू पतलू ये यार पुराने अपने थे | गोल गोल घूम शक्तिमान बनने के सपने अपने थे | ये उन दिनों के बाते है अक्कल के हम कच्चे पर मन के थोड़े सच्चे थे | जब हम छोटे बच्चे थे |
रेल गाडी मे बैठ नानी के घर को जाते थे | खुले असमान मे बैठ नल के नीचे नहाते थे | भरी दुपहरी नंगे पाँव आम तोड़ने जाते थे और माली के आने पे सरपट दौड़ लगते थे | चूहले के पास बैठ बड़े चाव से खाना खाते थे | और नानी के बातो मे कुछ अलग मजा ही पाते थे | ये उन दिनों के बाते है जब शैतानी मे हम पक्के थे | जब हम छोटे बच्चे थे|
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