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ऐ दोस्त जरा रुक जाना था| नहीं ऐसा कदम उठाना था

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ऐ दोस्त जरा  रुक जाना था| नहीं ऐसा कदम उठाना था| माना बहुत निराश थे| हर जगह से तुम हताश थे| सपने शायद टूट रहे थे अपने भी तुमसे रूठ रहे थे| बस थोड़ा धैर्य दिखाना था| नई उम्मीद नए सपनो संग जमकर जोर लगाना था| नहीं ऐसा कदम उठाना था| माना हर कोशिश नाकाम हुए, जीत से ज्यादा मिली| नहीं मिला वो प्यार सच्चा | दूर हुआ वो यार अच्छा| जीवन लगा अधूरा था|  सूनेपन का पहरा भी पूरा था| बस थोड़ा और विश्वास जगाना था| सिंह सी गर्जन कर सूनापन दूर भागना था|नहीं ऐसा कदम उठाना था| माना दिल बहुत ही भारी था और सुनने को न कोई याड्डी था | अंदर अंदर घुटन बहुत थी, और  कपट लोगो का जारी था| बस एक नई कोशिश कर बाधा को लांग के जाना था| नहीं ऐसा कदम  उठाना था . कभी कभी जीवन का पहिया कठिन पर जाता है उम्मीद होती गुम  और मस्तिष्क बहुत चकराता है |ऐसे मे खुद को साधो ध्यान धरो और खुद को जानो| भूलो सब चिंताए और खुद से कुछ पल बात करो| कैसे तुम हर मुश्किल को बड़ी हिम्मत से जीता था| रोक न पाता कोई रोड़ा| कैसे हर नाकामी को तोड़ा था| फिर हर निराशा में भी तुम को एक आशा दिख जाएगी| खोए हुए सारी ताकत वापस...

Kavita 020 - राधा कृष्णा प्रेम

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कभी अगर सृष्टि मे कही कोई प्रेम कहानी आयेगी,कलम बने कृष्णा और स्याही राधा रानी बन जाएंगी। आओ सखा आज तुम्हे एक अमर कहानी कहते है, अधूरी होकर भी जो पुरे है वो कथा सायानी केहते है। बात जरा ये तब की है जब प्रेम बहुत हे महंगा था, स्त्री पुरषो के मिलने पर कुंठित प्रथा और राजा महराजाओं का पहरा था। ऐसे मे गोकुल के ग्वाले को बरसाने की गलिआ भइ थी और बरसाने की गोरी की मन प्रभु छवि बस आई थी। बाल अवस्था मे हे कृष्णा ने प्रेम अलाप लगा डाला। ब्याह कराओ राधा से यह कह कह माता का माथा दुखा डाला। रग रग मे उस ग्वाले की राधा रानी छाई थी,दुर देश से ही कृष्णा की मुरली प्रेम संदेसा लाई थी। मुरली की धुन पर राधा दीवानी सी नाचे है ,भूख प्यास सब भूल बेर बेर हवादान से झाके है। राधा दर्शन के अभिलाषी, प्रभु चूड़ी बेचने आई है।बरसाने के गालिओ मे दर दर के ठोकर खाए है। लाल, हरी और नीली पीली सब रंग की चूड़ी लाया हु,जाने कौन रंग जो राधे मन को भाएगा  और उसके मुख पर स्वर्ग सी सुंदरता लाएगा। प्रेम रंग मे डुबे भगवान् शयद अब भूल गए, जो श्याम रंग मे रंगा हो उसको क्या कोई रंग अब भाएगा। तेरे सब रंग फीके है, ये कैसी ...

Kavita - 019 थोड़ा सा सूनापन ,दिल में तेरे जाने का गम

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थोड़ा   सा   सूनापन  , दिल   में   तेरे   जाने   का   गम   अब   भी   बाकी   तो   है   माना    हुए   कई साल   बीते   महीने   कुछ   ख़ास   पर   तेरे   न   होने   का   वो   अजीब   सा   एहसास   अभी भी   बाकी   तो   है . वो   बैठ   अकेले   सोच   तुझे   मुस्काना   पर   तेरे   न   होने   पर   चुप   चुप   कर   रो   जाना अभी   बाकी   तो   है बिन   वजह   तेरी   गालिओ   में   जाना  |  वो   तेरे   घर   के   आगे   रुकजाने  | वो   तुझसे मिल   जाने   की   उम्मीद   अभी   बाकी   तो   है बैठ   मैखाने   में   हद   से   ज्यादा   पी   जाना   और   बेहोशी   में   तुझसे   बतलाना  ...

Kavita - 018 वो दिन भी बहुत हसी थे

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वो दिन भी बहुत हसी थे और रात बड़ी मस्तानी थी जब दो दिलो ने शुरू की अपनी नई कहानी थी|  सुबह भोर से ही गुड़ मॉर्निंग के मैसेज आते थे और साँझ होते ही लगा कान पे फ़ोन बातो में जुट जाते थे | सुबह की पहली चाय से लेके खाने तक की डिटेल दी जाती थी आज नमक था कम चाय मे चीनी ज्यादा थी | पता है बिना बात मम्मी ने आज शिकायत लगा दी थी | जब छोटी छोटी बातो को लम्बा करके बतलाते थे और प्यार मे एक दूजे के लिए गाना भी गाते थे |जब उनकी एक हसी के लिए जोकर भी बन जाते थे और जानू मानु शोना मोना के नाम से उन्हें बुलाते थे | चोरी चोरी चुपके चुपके मिलने उनसे जाते थे | घरवालों से तरह के बहाने ख़ुब बनाते थे| कभी रूठना कभी मनाना ये काम रोज के होती थे | लव यू मिस यू के मैसेज से फ़ोन भी जब भर जाते थे |जब उनको लगी खरोच भी बड़ी चोट सी नज़र आती थी | हर पल करते बात पर फिर भी याद उनही की आती थी | जब सारी दुनिया एक दूजे तक सिमट कर रह जाती थी | वो दिन भी क्या दिन थे और रात क्या मस्तानी थी जब दो दिलो ने शुरू की अपनी प्रेम कहानी थी 

Kavita - 017 - आया मास त्योहारों का

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आया मास त्योहारों का मच गए धूम बाजारों मे | पहन नई नई पोशाके मिले सब मेहमानो से | रंग बिरंगी लइट लग गई फ्लैट और मकानों मे | टेब्लो पर सज गई प्लेटे  महंगे महंगे पकवानो से | ऑनलाइन शॉपिंग मे भी उथल पुथल है भारी| एक पे एक लेने की अब आई है अपनी बारी  | पहन जीन्स और जूत्ते हुई  मॉल जाने की तैयारी | श्री मातियो ने टोफो की लिस्ट थमा दी  भारी | खूब जमा है रंग | पैसे उड़े बन पतंग | वही दूर कही विरानो  मे मेले कुचले फटेहालों मे | बैठ कही कोई रोता होगा | के कल की भाती आज उसे फिर बच्चो संग फिर से भूखा सोना होगा | याद नहीं कब बच्चो को नए कपडे वो लाया था | दिन भर मेहनत कर सबने भर पेट भोजन कब खाया होगा | जलदी उठकर रोज सवेरे सामन बेचने जाता हु | मे भी बड़ी दुकानों जैसे सस्ते मे सौदा लगता हु | फिर भी क्यों मेरे बच्चो के तन पे कपडे मैले  है | क्यों मेरे घर के राशन के बर्तन खली होक फैले है | सामान तो मे भी अच्छा देता फिर भी लोग क्यों मुँह बनाते है | भैया थोड़ा महंगा है कह क्यों कुछ न ले जाते है | हे भगवन अब आस बची है तेरी | अब तो सुनले बात तू मेरी | न मांगू मई गाड़ी सोना | मुझ...

Kavita - 016 तुझको याद तो मेरी आती होगी

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पूनम की चांदनी रातो मे जब सारी दुनिया जगमग हो जाती होगी और तुझको नींद जब थोड़ी देरी से आती होगी | सच कहना | खिड़की से तकते चाँद को देख | तुझको याद तो मेरी आती होगी | मम्मी से हुआ हो झगड़ा या बहन से ना बांपाती होगी | और सारी दुनिआ मे तुझको दुश्मनी सी नज़र आती होगी | सच कहना | माथे पे आती गुस्से की रेखाओ संग तुझको याद तो मेरी आती होगी | जब बैठ अपनों के बीच भी खुद को पराया सा पाती होगी | जब कहने सुनने को कोई बात न रह जाती होगी | लाख कोशिश के बाद भी  दिल की बात जुबा तक न आती होगी | सच कहना | उस तन्हाई मे तुझको याद तो मेरी आती होगी | जब सावन मे बारिश की बुँदे धरती सी मिलने आती होंगी  और मम्मी संग सूखे कपङे छत पर लेने जाती होगी | सच कहना | धरती मे खोती बुँदे देख | तुझे याद तो मेरी आती होगी | जब सज सवार कर माथे पे बिंदी और आँखों  मे काजल लगा घर से बहार जाती होगी| देख आईने मे जब खुदको सबसे सुन्दर पाती होगी | पर किसी की तर्रीफ़े तेरे दिल को न छू पाती होंगी | सच कहना | खुद पर इतराते हुए तुझे याद तो मेरी आती होगी | 

Kavita - 015 जब हम छोटे बच्चे थे

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कंधो  पर  बास्ते  भरी  हाथ  जरा  तब  छोटे  थे  ये  उन  दिनों  के  बाते  है  जब  हम  छोटे  बच्चे  थे  |  रोज  सवेरे  उठकर  दौड़  स्कूल  को  जाते  थे  |    आधी  छुट्टी  से  पहले    टिफ़िन  चट  कर  जाते  थे  पर  पकडे  जाने  मैडम से मार भी खाते  थे  |  यारो  दोस्तों  संग  जम  कर  जश्न  मानते  थे  |  भोले  भले  पर  शैतानी  मे  पक्के  थे|  ये  उन  दिनों  के  बाते  है  जब  हम  छोटे  बच्चे  थे  | बिना  थके  घंटो  घंटो  बल्ले  खूब  बजाते  थे  |  और  गेंद  लेन  को  नाली  मे  भी  घुस  जाते  थे  |  शाम  को  बिजली  जाने ...