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Showing posts from April, 2017

Kavita - 010 - Not yet complete - बन्दर मामा

बन्दर मामा पहन पजामा दिल्ली घूमने आए है | साथ मामी छोटू चुटकी और घोडा गाड़ी लाए है | अपने पापो की गिनती कर यमुना नहाने का मन बनाए है | पर यमुना का गन्दा पानी देख, गाडी शांति मोहले दौड़ाए है | शांति मोहल्ले कि अशांति देख अब मामा घबराए  है और आनन् फानन मै सीलमपुर को दौड़ लगाए है | बन्दर मामा पहन पजामा दिल्ली घूमने आई है | सीलमपुर कि भीड़ देख अब मामा पगलाए है | और गाड़ी को वेलकम कि कुञ्ज गालिओ मै लाए है | पैर वेलकम मै न पा टेलकम | बिहारी कॉलोनी को आई है | और स्टैंड पे फल वालो को देख अब मामा ललचाए है | पर उनके मोल भाव से अब मामा पगलाए है | बन्दर मामा पहन पजामा दिल्ली घूमने आए  है |

Kavita - 009 - आज क़े नेता है भाई

आँखों मै चश्मा गले मै टाई देखने मै लगता था बाँदा हाई फई | पर रो रहा था | कही खो रहा था | जाने किस दुःख को अपनी जिंदगी मै ढो रहा था | शायद इस रूप से जनता को लुभा रहा | बड़े दर्द से वो लाचारी का हाथ मदद क़े लिए फैला रहा था | कुछ दिन बाद वो मुझे फिर दिया दिखाए | जाने कैसे उसने अपनी किस्मत पलटाई | लाचारी छोड़ क़े वो तो बन गया कसाई | भोली भली जनता क़े कर रहा कटाई | अपनी भारत माता क़े बोटी बोटी नोच खाई | गरीब लाचारों का वो कर रहा शिकार अपनी तिजोरी का बड़ा रहा आकर | यह सब देख मैंने सरपट दौड़ लगाई | अरे ये कोई और नहीं | आज क़े नेता है भाई

Kavita - 008 - दिल की हालत

कभी सपनो मे आती हो | कभी यादे सजती हो | मेरे हर एक पल मे मुझको जीना सिखाती हो | न मजनू की न राँझा की कहानी है | ये मेरे दिल की हालत है ये मेरी जिंदगानी है | न मजनू सा भटकता हु न राँझा सा मचलता हु | तुझे मै याद करके बस यही मदमस्त रहता हु | न कुछ पाने की मंशा है न कुछ खोने की चिंता है | मुझे बस तेरे चेहरे की मुस्कराहट की चिंता है | तुझे सोच कर ही अब मेरा दिन गुजरता है | न सोचु तुझे तो सब सुना सा लगता है | ना पैसे कमाने की न अब दौलत जुटाने की मुझे बस आरजू है तेरे संग कुछ पल बिताने की | मैं सोता हु तेरे सपनो | मे जगता हु तेरी यादो क़े साथ | कोई हो न हो तुम रहते हो हरपल मेरे दिल क़े पास | न कुछ और पाने न कुछ और गवाने की मुझे बस आरजू है तुझे अपना बनाने की | न मजनू की न राँझा की न कान्हा की कहानी है ये मेरे दिल की हालत है ये मेरी जिंदगानी है |

Kavita - 007 - नुक्कड़ का वो पहला पहला प्यार

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कभी इज़हार कंही इनकार याद मुझे वो नुक्कड़ का वो पहला पहला प्यार | देख तुझे जब पहली बार दिल मेरा घबराया था | टन टन टन टन बाजी घंटिया दिल मेरा पगलाया था | लव का चढ़ा बुखार और इलाज़ समाज न आया था पत्झड़ के इस मौसम मे भी लव का सीजन आया था | तुझको देखने का फिर दूसरा मौका पाया था | देख तुझे फिर अगली बार दिल को ठंडक सी आई थी | झटपट यार दोस्तों की एक बड़ी सभा बुलाई थी | बहस हुई बलवान, पर लिया सबने तुझको भाभी मान | फिर चाय कोल्ड्रिंक की एक पार्टी रखवाई थी और तुझको पाने की अखण्ड प्रतिज्ञा खाई थी | आगे का बना प्लान | लिया दोस्तों से डीयो मांग और मम्मी से फेयर एंड हैंडसम की नई शीशी मंगवाई थी | फिर तू अगली बार नुक्कड़ पे चाट खाने आई थी | कसम खुदा की हरी चटनी की लाल मिर्च सी छाई थी | फिर जब तूने बड़े प्यार से पहली टिकी खाई थी | तुझेमे मुझको चुनु मुन्नू की अम्मा नज़र आई थी | फिर रख गोलगप्पे का मान तुझसे नज़र लड़ाई थी | फिर जब अगली बार तू देख मुझे मुस्काई थी | कसम मम्मी की मेरी जान हथेली आई थी | आँखों आँखों मे फिर तुझो दिल की हाल बता डाला | बिन बोले ही तुझको अपनी हर मंशा बतलाइए थी | फिर जब तूने सोलह...

Kavita - 006 - ऐ खुद बहुत हुई तेरी खुदाई

ऐ खुद बहुत हुई तेरी खुदाई आ बैठ के चर्चा करते है | बहुत हुई खीचा तानी आ बैठ गुफ्तगू करते है | बहुत हुई मनमानी आ बैठ फैसला करते है | मैं घर से नाश्ता लाता तू चाय घर से ले आना, आ चाय पे चर्चा करते है | सब काम बिगड़ सा जाता है | हर कोई खफा नज़र आता है | कुछ भी अच्छा करू सब उल्टा पुल्टा हो जाता है | चल उलटे को सीधा करते है | बैठ किसे कौन मैं आराम से चर्चा करते है | माना तू भगवान् है | काम तुझे तमाम है | पर निकाल थोड़ा सा वक्त आ मुझसे भी थोड़ा सा मिल | और बात तसाली से सुनना पर बीच बीच मैं है हु कोई न कह के दिल को ठंडक सी देना | बहुत हुई तेरी मूर्ति से बाते आ आमने सामने डिसकस करते है | चल किसे ढाबे बे साग दे नाल चर्चा करते है| तू ट्रेवल एक्सपेंस की चिंता न करना | मंदिर से रिइम्बर्ससे करालेन्गे | लंच डिनर की चिंता छोड़ बैठ ताज मैं खा लेंगे | बस तू स्वर्ग से पहली ट्रैन पकड़ कर जल्दी से मिलने आ जाना और साथ मैं मेरे कर्मो के चिट्टा भी उठा लाना | फिर कर्मो को ऑडिट कर हम निष्कर्ष निकालेंगे | आ बैठ पेड की छाऊ में कर्मो की चर्चा करते है| कहते तू सबका ध्यान रखता | किसी पे जल्दी किसी पे...

Kavita - 005 - ऐ चाँद सुना है तेरे व्रत से

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ऐ चाँद सुना है तेरे व्रत से प्यार की उम्र बढ़ जाती है | सच्चे मन से मानगो तो हर चाहत पूरी हो जाती है | चल मै तुझसे म िलने आऊंगा और साथ मैखाने की सबसे महंगी बोतल लाऊंगा | कुछ इधर की कुछ उधर की बाते खूब बनाएँगे | कुछ तुम कहना कुछ तुम सुनना धमा चोकड़ी मचांगे| तू मुझको नभ के तारे दिखलाना| मै तुझको धरती पे चाँद दिखाऊंगा | मै तुझसे मिलने आऊंगा और मैखाने की सबसे महंगी बोतल लाऊंगा | जाम से जाम छलका कर तुझको अपने दिल का हाल सुनाऊंगा | की हर चांदनी रात तुझमे उसको देखा है कभी रोते कभी बिलखते दीवानो सा पूजा है | अब बस मुझको बत्ला कैसे उसको पाउँगा | मै जल्दी मिलने आऊंगा और साथ मै मैखाने की सबसे महंगी बोतल लाऊंगा | फिर बोतल को आधी कर मै उसमे ही खो जाऊंगा | अपनी आँखे मूँद मूँद कर मन ही मन मुस्कुंगा | फिर धीरे धीरे तेरी पी हुए बोतल भी मुझको चढ़ जाएगी | बिन पिए ही मै भी होश खो जाऊंगा | मै तुझको मिलने आऊंगा और मैखाने की सबसे महंगी बोतल लाऊंगा | जब तू खाली बोतल संग मस्ती मै झूम रहा होगा | मै हरपल उसको ढूंढ रहा हूँगा | खुदको उससे दूर देख मै और रुक न पाउँगा | फिर तुझसे प्यार का वादा ले मै घर को ल...

Kavita - 004 - रोज रोज सपने मे आकर

रोज रोज सपने मे आकर हँस कर कुछ कह जाती हो मेरे दिल के टावर को सिग्नल से भर जाती हो | ऐ  मेरी प्रियतम प्यारी ऐ मेरी राज दुलारी | दिन मे भी उपकार करो अपने मधुर कंठ से मुझको भी कभी हाए करो | आते जाते तुमको देख दिल मे कुछ कुछ होता है मेरा मन फिर से सोने का करता है के फिर मेरे सपनो मे आके तुम मुझपर प्यार दिखाओगी | ऐ मेरी प्रियतम प्यारी ऐ मेरी राजकुमारी कुछ मुझपे भी उपकार करो चलो हाए नहीं तो आते जाते कभी तो मुझको बाए करो | अपने मन के मंदिर मे तुमको देवी सा रखा है | पूजा तो आती नहीं फिर भी हर पल तुमको पूजा है | तुही लक्ष्मी तुही सरस्वती तुही शेरो वाली माता है | ऐ मेरी देवी प्यारी इस भक्त का भी कल्याण करो , चलो हाए नहीं न बाए पर कभी तो आँखे चार करो | ऐ मेरी प्रियतम प्यारी मुझपे भी उपकार करो | दूर दूर से देख के तुम को सीटी खूब बजता हु | तुम्हारे गुलाबी होटों से सपनो मे rang भर जाता हु रियल का कुछ पता नहीं पर सपनो मे ही जी जाता हु | ऐ मेरी प्रियतम प्यारी |ऐ मेरे सपनो की मलिका कभी मेरे सपनो को साकार करो कभी रियल मे भी प्यार करो | नागिन जैसे आँखे तेरी दिल को मेरे डस जाती है | मेरे र...

Kavita - 003 - पत्नी पीडीत पति

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पत्नी पीडीत पति ने जाके शम्भू जी का ध्यान लगाया | ॐ नमः शिवाये के जाप से शम्भू जी को उसने जगाया | बड़े यतन से शम्भू उतरे, बोले बोल क्या है पुत्रे | क्यों तुने है ध्यान लगाया क्या कष्ट जो मुझे जगाया | उसने जा पैरो को पकड़ा | शम्भू जी आब मुझे बचाओ | मेरी पत्नी पर विजय दिलाओ | मे हु एक मेल अबला, एक निर्दयी पत्नी का तबला | सुबह शाम वो मुझे बजाती | सारा काम मुझसे करवाती | अब मुजको तुम अस्त्र दिलाओ | इस चुड़ैल से  मुक्त कराओ | यह सुन शम्भू जी गरजे | ले नाग त्रिशूल संग जम के बरसे | साब गलती है तेरी नाक काटा दी मेरी | ले जा मेरा अब ये त्रिशुल और मजे कर तू बनके कूल | इतने मे पार्वती आ प्रकति , जा शम्भू की चुटिया पकड़ी और बोली, बहुत हो लिया भारत मिलाप चलो करो अब बर्तन साफ़ | ३० मिनट है तुमने मांगे ३२ हो लिए है जान | चलते हो या लू अब प्राण | ये सुन शम्भू जी जा बिखरे. बोले माफ़ कर दो प्यारी इ ऍम वैरी वैरी सॉरी | यह देख पीड़ित ने बदला प्लान और लगा लिया विष्णु जी का ध्यान | है प्रभु तुम हो सर्व ज्ञानी, पिया तुमने घाट घाट का पानी | तुमने संभाली हजारो गोपी, अब दिलाओ कुछ ऐसी टोपी, न पड़े बीवी से ह...

kavita - 002 - चाय पे चर्चा

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चाय पे थी चर्चा | टॉपिक था देश की बिगड़ती वयवस्था | तीन मित्र जो आईटी के विद्वान थे, देश की बिगड़ती हालत से परेशान थे | पहले मित्र जो चाय मे बिस्कुट डूबा डूबा के खा रहे थे| देश से ज्यादा बिस्कुट चाय मे न गिर जाए इस चिंता से घबरा रहे थे | बिस्कुट मुंह मे दबा के बोले, अब इस देश को तुम ही बचा सकते हो भोले | हर तरफ से बरस रहे है यहाँ भ्रष्टचार के ओले | कोई तो आए और इस देश के प्रगति के मार्ग खोले | दूसरे मित्र जो स ुर सुर चाय की चुस्की लगा रहे थे | देश के चक्कर मे चाय ठंडी न हो जाए इस दुविधा से घबरा रहे थे | बोले मे तुम्हारी बात पूरी तरह से मानता हु | जितना मे इस देश को जनता हु | इस देश मे रहने वाले ही इससे से आजादी मांगते है | पॉपुलैरिटी पाने को आ सहनशीलता का गान गुनगुनाते है | हद तो तब हो जाती है जब इस देश का भविषय ही इसके मुक्ति मांगता है, इसका होके भी इसको अपना शत्रु मानता है | तीसरे मित्र जो सामने बैठी कन्या को छुप छुप के नीहर रहे थे | देश मे बढ़ती बलात्कार, महिला उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे थे | बोले इस देश की महिला आज भी इस देश मे असुरक्षित है | इस देश के पुलिस और सर...

Kavita - 001 - न्यू ईयर रेसोलूशन

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न्यू ईयर रेसोलूशन है न बचा कोई सोलुशन है अदरक जैसे फैली इस काया को अब सुडोल बनाना है | पिज़्ज़ा बर ्गर जंक फ़ूड छोड़, हेल्थी फ़ूड अपनाना है | बस अब जिम मे जाना है भरी भरी वेट उठा के बॉडी का वेट घटना है | कोई पुरानी जीन्स अब फिट न आती है | नीचे गिरी हुए चीज उठने मे अफ्फत मच जाती है | बैठ के उठने उठ के बैठने मे पूरी क़यामत लग जाती है |कौनसा जूता पहना है अब ये भी न दिख पाता है इस मोटी सी तोंद के सिवा कुछ और नज़र नहीं आता है | बस अब जिम मे जान है | ट्रेड मिल पे दोढ दोढ के बॉडी का वेट घटना है | बाइक पे बैठने जाऊ तो टायर मुझसे डर जाता है | कंडक्टर भी अब हसी ख़ुशी अब डबल टिकट कटवाता है | वेट नापने का काटा भी बिना रुके भाग जाता है | ग्रीन टी भी अब तो खुद को असहहाय सा पाती है | बस अब जिम मे जाना है हैवी हैवी क्रुंचेस मार के बॉडी का वेट घटना है | चाहे जितना अंदर खींचू २ इंच बच जाता है | बगल वाला छोटा बच्चा भी मोटू अंकल कह हस जाता है | अब तो ना कोई यार दोस्त भी लंच डिनर पे संग ले जाता है | देश की इकॉनमी कैसे भी हो पर तोंद को रोक न पाती है | बस अब जिम मे जाना है हैवी हैवी पुशअप्स मार बॉडी का वेट ...